सफ़र में होतो कैसे नमाज़ अदा करें

 सवाल:-) *सफ़र में होतो कैसे नमाज़ अदा करें?*

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👉जवाब:-) *जब मुसाफिर सफ़र की हालत में होतो  “4 रक-अत ” वाली नमाज़ों को “2 रक-अत ” पढ़ता है,* तो इसे कसर की नमाज़ कहते हैं.

                                                                                                      

👉 (क़ुर आन:-) *जब तुम सफ़र में जा रहे हो तो तुम पर नमाज़ों का कसर करने में कोई गुनाह नहीं.*

📚(सुरह निसा आयत: 101) 

                                     

👉 हदीस:- हजरत इबने उमर (رضى الله عنه) से रिवायत है *रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया बेशक अल्लाह ताला ने हमें हुक्म दिया है कि हम दौराने सफ़र सिर्फ 2 रक-अत  नमाज़ अदा करें.*

(सुनन निसाई:458)


👆👆 तो साबित हुआ कि *जब कोई सफ़र करे तो वह नमाज़ में कसर करे यानी “4 की जगह 2 रक-अत ” अदा करे सिवाय मगरिब के और सुन्नत नहीं पढ़ी जाएगी मगरिब में तीन रक-अत  पूरी पढ़ी जाएगी और फज्र की “2* सुन्नत” भी पढ़ी जाएगी इसके अलावा और सुन्नत माफ हैं.                   

👉दलील :- मगरिब की नमाज़  सफ़र में “तीन ही” रक-अत  पढ़ी जाएगी.                    

👉 इब्न उमर (رضى الله عنه) फरमाते हैं की *नबी करीम ﷺ को कहीं जल्दी पहुचना होता तो मगरिब की तकबीर कहते और “3 रक-अत ” नमाज़ पढ़ कर सलाम फेर देते, फिर थोड़ी देर बाद “इशा” की तकबीर कह कर “2 रक-अत ” पढ़ कर सलाम फेर देते और इशा के बाद और नफिल कुछ ना पढ़ते.*  

📚 (सही बुखारी हदीस: 1091).


👉 फज्र की सुन्नत ना छोड़ना:- अबू कतादा से रिवायत है कि *रसूल ﷺ ने सफ़र के दौरान भी फज्र की सुन्नत हमेशा पढ़ी.* 

📚(सही मुस्लिम:  680)


*कसर के दौरान वित्र:-* इमाम नाफे रिवायत करते हैं कि इब्ने उमर رضى الله عنه अपनी सवारी पर *नमाज़ पढ़ते और वित्र भी पढ़ लेते और कहते नबी करीम ﷺ ऐसा ही किया करते थे.*

📚 (सही बुखारी 1095).


*👉 कसर कितने दिन तक कर सकते हैं:-*👇👇

 इस मामले में उलमाओं की ये राय है की, *अगर कोई “4 दिन” की नियत से सफ़र करे तो वो क़सर करे, उससे ज़यादा दिन का होतो वो पूरी नमाज़ पढ़े.* 

📚 (अल-मुग़नी2/65)



👉 *कितनी दूरी के सफ़र में कसर करें?:-*   इस मामले में ज़यादा तर *उलमाओं ने “80 km” तक जाने को सफ़र माना है,* कुछ उलमाओं का ये कहना है *की जितनी दूरी को आप सफ़र समझते हैं, उस हिसाब से आप क़सर कर सकते हैं.*

                                                                                                     👉 नबी करीम ﷺ ने फरमाया”:- *जो औरत अल्लाह और आखिरत पर यकीन रखती है उसके लिए जायज़ नहीं कि वह बिना किसी महरम के तन्हा “1 दिन” भी सफ़र करे.*

📚(सही बुखारी:1088)

                                                    

👆 इमाम बुखारी ने इस हदीस को लेकर यह साबित किया है कि *“1 दिन” की रात की दूरी का नाम भी सफ़र है इसलिए 48 मील (80km) की दूरी पर कसर किया जाएगा एक दिन रात में एक आदमी इतना दूरी तय कर लेता है.*

 वल्लाहु आलम

 (Allah knows Best).


*कसर शुरू कब करें:-*  सफ़र के इरादे से घर से निकल पड़े तो निकलने के साथ ही कसर शुरू कर दें.                                                                                                 

👉 अनस बिन मालिक رضى الله عنه से रिवायत है कि मैंने *"नबी करीम ﷺ के साथ मदीना में ज़ोहर  की “4 रक-अत ” पढ़ी और जुल हुलैफा (मदीना से 6 मील की दूरी पर एक जगह है.) में पहुंच कर असर की “2 रक-अत ” पढ़ी.*

📚(सही बुखारी हदीस: 1089)                                                                                                👆 मालूम हुआ कि जब सफ़र के इरादे से घर से निकल पड़े तो निकलने के साथ ही कसर शुरू कर दें.       

                                                                

*सफ़र के दौरान नमाज़ जमा करना:-  ज़ोहर , असर और मगरिब व इशा को इन में किसी वक़्त में दौराने सफ़र जमा करना जायज़*

                     

👉 हज़रत मआज़ बिन जबल رضى الله عنه से रिवायत है कि "नबी करीम ﷺ सूरज ढलने के बाद सफ़र का इरादा फरमाते तो ज़ोहर व असर को एक साथ अदा फरमा लेते. 

📚(तिरमिज़ी:552)

📚(अबू दाऊद:1220) 

👉 हज़रत इब्ने उमर رضى الله عنه से मरवी है कि रसूल ﷺ को *जब सफ़र में जाने की जल्दी होती तो आप नमाज़ मगरिब में देरी करते यहां तक कि मगरिब व इशा को एक साथ पढ़ लेते.*  

 📚(सही बुखारी:1019).                                                     


👉 हज़रत इब्ने अब्बास رضى الله عنه से रिवायत है कि *नबी करीम ﷺ ने गज़वा तबुक के सफ़र में ज़ोहर   वा असर और मगरिब व इशा को जमा किया.*              

📚(सही मुस्लिम:705).                                                                                                      

👆👆 इन दलीलों से *मालूम हुआ कि “ज़ोहर व असर” और “मगरिब व इशा” को इन में किसी वक़्त में दौराने सफ़र जमा करना जायज़ व सही है.*

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